9/23/2015

घुटन

भीड़ में घुटती हूँ मैं 
अकेले रहने दो मुझे 
कुछ नहीं भाता मुझको 
चाहे भूखा रहने दो मुझे 
जल - वायु है साथी मेरे

कोई साथ न रास आता मुझे 
जी करता उड़ जाऊ इस जग से 
करूँ विचरण मैं स्वच्छंद नभ में 
पर्वतों की ऊंचाई नाप लूँ 
चाँद पर एक जहाँ बसा लूँ 
काश ! कि यह हो पाता 
रहूँ वहाँ, जहाँ न कोई हो आता
अकेले आए हैं, है अकेले जाना
कुछ बरस साथ सिर्फ अपना पा जाना
बाकी दुनिया माया - जाल है 
अपने
सिर्फ कहने को
असलियत में हम कंगाल है !!
VAISSHALI 
14 /10 /2015 
11 :55 AM

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